गुलाम भारत की वह आयरन लेडी जो सब्जी की टोकरी में रखती थी बम

देश की आजादी में शहीद भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद जैसे लोगों की कुर्बानी की भुलाया नहीं जा सकता। उनकी टीम के तमाम ऐसे लोग जिन्हें इतिहास ने इतना तवज्जो नही दिया लेकिन उनकी भूमिका भी कम नहीं थी। ऐसी ही थी एक दुर्गा देवी जिन्हें बाद में दुर्गा भाभी के नाम से जाना गया। जो भगत सिंह को अंग्रेजों की नजरों से बचा कर भगाने के लिए उनकी पत्नी बनीं। दुर्गा भाभी जो अपनी सब्जी की टोकरी में बम लेकर चलती थी। उन्होंने न केवल क्रान्तिकारियों की मदद की बल्कि खुद अंग्रेजों पर गोली भी चलाई और जेल भी गई। हम आपको विस्तार से बताते हैं दुर्गा भाभी की कहानी—
शादी के बाद पढाई की और बनीं टीचर
संगमनगरी इलाहाबाद में जन्मी बच्ची जिसका नाम दुर्गा देवी था का विवाह 10-11 साल की उम्र में भगवती चरण वोहरा से हो गया । भगवती उस समय के विद्वान माने जाने थे लेकिन दुर्गा देवी पढ़ी-लिखी नहीं थीं। वोहरा के प्रोत्साहन के बाद दुर्गा देवी ने पढाई की। इसके बाद वह स्कूल में पढाने लगीं। वोहरा और दुर्गा भाभी का घर राजनीतिक गतिविधियों और क्रांतिकारी विचारधारा का गढ़ बन चुका था। यहां कई तरह के क्रांतिकारी अलग-अलग विचारधाराओं से प्रभावित होकर आते थे। घंटों बैठकें चलती थीं। बहुत सी बातें गुप्त होती थीं। गांधी जी की विचारधारा से अलग क्रांतिकारियों की विचारधारा यहां पनपी। तब नौजवान भारत सभा का घोषणा पत्र भगवती चरण वोहरा और भगत सिंह ने लिखा था। आंगन में दुर्गा भाभी बच्चों को पढ़ा रही होती थीं और पीछे के कमरे में बम बनाने का प्रयोग जारी रहता था।
गुप्तचर बन कर आजादी के मिशन में दिया योगदान
उस जमाने में क्रांतिकारी रोज मिल नहीं सकते थे, ऐसे में दुर्गा भाभी का काम सूचनाओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना होता था। तब यह सोचना भी मुश्किल था कि 20-21 साल की लड़की किसी तरह की जासूसी कर सकती है। वह टमाटर, प्याज, पालक के बीच में आलू की जगह बम लेकर एक स्थान से दूसरे स्थान आने जाने लगीं। दुर्गा भाभी पोस्ट बॉक्स का काम करती थीं।
भगत सिंह ने की सांडर्स की हत्या
लाला लाजपत राय की मौत के बाद क्रांतिकारी गुस्से में थे। दुर्गा भाभी ने जोश भरते हुए कहा कि लाला जी पर लाठी चार्ज का आदेश जिस अंग्रेज अफसर ने दिया था, उसकी मौत से ही बदला लिया जाएगा। भगत सिंह राजी हो गए। राजगुरू और सुखदेव भी बदले के लिए तैयार हो गए। उन्होंने लाला जी पर लाठी बरसाए जाने को राष्ट्र का अपमान माना। स्कॉट को मारने के लिए योजना बनी। पहचान ठीक नहीं होने के कारण स्कॉट की जगह सांडर्स को मार दिया गया। जिसके बाद अंग्रेज उनके पीछे पड़ गए।
भगत सिंह पत्नी बन पहुंचाया सुरक्षित स्थान
इसके बाद भगत सिंह ने दाढ़ी हटा दी, जिससे पहचाने न जा सकें। उन्होंने हैट पहनकर अंग्रेज अफसर जैसा हुलिया बना लिया। दुर्गा भाभी ने भी स्कूल से छुट्टी ले ली। भगत सिंह, राजगुरु और आजाद को पुलिस की नजरों से बचाकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाना था। दुर्गा भाभी ने लाहौर से कलकत्ता निकलने की योजना बनाई। अपने बेटे को लेकर भी दुर्गा भाभी चल पड़ीं। वह भगत सिंह की पत्नी बनकर कलकत्ता के लिए चलीं। भगत और दुर्गा फर्स्ट क्लास में और राजगुरु थर्ड क्लास का टिकट ले चुके थे। राजगुरु नौकर बने थे। भगत सिंह देखने में पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित भारतीय नौजवान लग रहे थे। चंद्रशेखर आजाद एक संन्यासी के वेश में ट्रेन में चढ़ गए। अंग्रेजों को पता था कि हमलावर रेलवे या बस स्टेशन से ही भाग सकता है। वहां चप्पे-चप्पे पर पुलिस का पहरा था। ऐसे में लाहौर से निकलना लगभग असंभव था। इस बात की पूरी आशंका थी कि अगर पकड़े गए तो लाहौर रेलवे स्टेशन पर एनकाउंटर हो सकता है। ऐसे में बच्चे को लेकर चलना ठीक नहीं था। लेकिन दुर्गा देवी ने कहा था कि इससे अच्छी शहादत मेरे बच्चे को और क्या मिल सकती है। भगत सिंह ओवरकोट में थे। कोट का कॉलर भी ऊंचा रखा था जिससे चेहरा पूरा न दिखे। दुर्गा भाभी ऊंची हील और कीमती साड़ी पहनी थीं। एक अंग्रेज पुलिस अफसर को शक हो गया। वह फर्स्ट क्लास के दरवाजे पर आकर खड़ा हो गया। अंग्रेज कुछ बोलता उससे पहले दुर्गा भाभी ने अपने बच्चे को उसे थमा दिया और बोलीं कि क्या वह थोड़ी मदद करेंगे। वह हड़बड़ा गया और निकल गया। उसे लगा कि बच्चे के साथ कोई महिला खुफिया मिशन पर भला कैसे निकलेगी। जिसके बाद वह कलकत्ता पहुंच गए।
बम टेस्टिंग के दौरन हुई पति की मौत
दुर्गा भाभी कलकत्ता से कुछ दिन बाद लौट आईं। इधर, भगत सिंह ने दिल्ली में भरी असेंबली बम फेंका और अरेस्ट हो गए। लाहौर में दुर्गा भाभी के घर में बम बनाने का काम तेजी पकड़ रहा था। मामले की सुनवाई के लिए भगत सिंह लाहौर की एक जेल से दूसरे जेल ले जाए जाते थे। रास्ते में बम मारकर छुड़ाने की योजना बनी। बम बनकर तैयार हो गया, लेकिन उसे टेस्ट करना जरूरी था। एक दिन दुर्गा भाभी के पति बम का टेस्ट करने चले गए। नदी के पास भगवती चरण वोहरा ने देखा कि बम का ट्रिगर ढीला है। जब सुखदेव ने कहा कि मैं टेस्ट करूंगा तो वोहरा खुद टेस्ट करने लगे। बम फेंकते समय वह तुरंत फट गया और भगवती चरण का हाथ और पेट का हिस्सा उड़ गया। भगत सिंह को छुड़ाने से पहले ही भगवती चरण शहीद हो चुके थे। दुर्गा भाभी का बड़ा व्यक्तिगत नुकसान हुआ।
अब तक पूरी तरह से जासूस बन चुकी थी दुर्गा
1930 के बाद फरार क्रांतिकारी के रूप में उन्होंने कई भेष बदले। जब वह रावलपिंडी जाती थीं तो सलवार कमीज पहनकर फटी दरी में बम लेकर लाहौर आतीं। जयपुर में वह लहंगा पहनती थीं। वह चाची बनकर भगत सिंह से मिलने जेल जाती थीं। वह पार्टी की गुप्तचर बन चुकी थीं। उनकी कोशिश थी कि जेल के अंदर भगत को पार्टी की खबर मिलती रहे और उनका हौसला बना रहे। वह लगातार जेल आती जाती रहीं। भगत सिंह को फांसी की सजा सुना दी गई।
अंग्रेजों पर चलाई गोली
भगत सिंह और उनके साथियों की फांसी की सजा का बदला लेने के लिए दुर्गा भाभी, वैशम्पायन बंबई चले गए। बंबई के गवर्नर को गोली मारकर इसका जवाब देना था। कार में सवार दुर्गा भाभी की टीम ने देखा कि गवर्नर हाउस में सख्त पहरा था। वहां अंग्रेज पुलिसवाले दिखे तो दुर्गा भाभी ने गोली चला दी। जल्दबाजी में दुर्गा भाभी की साड़ी का एक हिस्सा गेट में फटकर रह गया। पुलिस को पता लगा कि लैमिंग्टन रोड फायरिंग में कोई महिला शामिल है। काली साड़ी के टुकड़े की वजह से पुलिस समझ गई कि उस गोलीबारी में दुर्गा देवी का हाथ था। ब्रिटिश मीडिया में आया था कि यह पहली महिला उग्रवादी का अटैक था।
फांसी रुकवाने को महात्मा गांधी से की मुलाकात
भगत सिंह की फांसी रुकवाने के लिए दुर्गा भाभी महात्मा गांधी से भी मिली थीं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। 1931 में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी हो गई। भगवती चरण और आजाद भी नहीं रहे। दुर्गा भाभी अकेली पड़ चुकी थीं। कोई ठिकाना नहीं था। बेटे को किसी अपने को देकर दुर्गा भाभी अकेले ही निकल पड़ीं। बाद में उन्होंने सरेंडर कर दिया। तीन साल वह कैद में रहीं और बाद में छूट गईं। 1936 में लाहौर से गाजियाबाद फिर लखनऊ आकर बसीं। यहां उन्होंने स्कूल खोला। 1999 में उनका निधन हो गया। आज भी जब महिला क्रांतिकारियों का जिक्र होता है तो दुर्गा भाभी का नाम गर्व के साथ लिया जाता है।