43 साल पहले 20 लोगों का कत्ल, सजा सिर्फ एक को ग्रामीण बोले इंसाफ नहीं मिला
पुर देहात में 43 साल पहले हुए बेहमई कांड ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था। बेहमई कांड की बरसी के दिन ही इस चर्चित मुकदमे का फैसला हो गया। अदालत ने एक आरोपी को उम्र कैद की सजा सुनाई और दूसरे को संदेह का लाभ देते हुए रिहा कर दिया। रक्त रंजित कर देनेवाले बेहमई नरसंहार मामले में अदालत ने 43 साल बाद फैसला सुनाया। बेहमई में एक ही जाति के 20 लोगों को मौत की नींद सुला दिया गया था। जिनकी शहादत का पत्थर गांव में लगा हुआ है। स्थानीय लोग फूलन गैंग की गोलियों के शिकार लोगों को श्रद्धांजलि देते हैं।
14 फरवरी 1981 को चंबल से सियासत का सफर तय करने वाली फूलन देवी ने डकैत गिरोह के साथ खून की होली खेली थी। क्षत्रिय वर्ग के 20 लोगों को कतार में खड़ा कर गोलियों से छलनी कर दिया गया था। घटना में 20 लोगों की मौत हो गई थी और छह घायल हो गए थे। सामूहिक हत्याकांड का 36 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया। 2012 में जीवित बचे पांच आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दायर की गई। तीन आरोपियों की मौत के बाद श्यामबाबू और विश्वनाथ जीवित बच गए थे। न्यायालय ने श्यामबाबू को बेहमई कांड के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। दूसरे अभियुक्त विश्वनाथ को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। बेहमई कांड ने देश को झकझोर कर रख दिया था। सामूहिक नरसंहार से केंद्र की सरकार तक हिल गई थी. विदेशी मीडिया में भी सामूहिक नरसंहार छाया हुआ था। कानपुर देहात न्यायालय ने आज 43 साल बाद फैसला सुनाया. विश्वनाथ को अदालत से रिहाई मिल गई और दूसरे आरोपी श्याम बाबू के खिलाफ आरोप तय करते हुए आजीवन कारवास के साथ 50 हजार का अर्थ दंड लगाया। वही वह मैं गांव के रहने वालों में इस फैसले के प्रति नाराजगी देखने को मिल रही है उनका कहना है कि 43 साल बाद इंसाफ मिला वह भी आधा अधूरा। इतने लंबे समय तक न्याय के लिए संघर्ष किया गया और महज एक शख्स को सजा मिली। बेहमई कांड के बाद बनी बैंडेट क्वीन फिल्म देखकर लोगों के मन में यही है कि फूलन के साथ गैंगरेप हुआ तो उसने बंदूक उठा लिया और डकैत बन गई। जबकि इसके पीछे की हकीकत कुछ और है।
उस वक्त बीहड़ में डकैतों का बोलबाला था जिसमें कई नामी डकैत मल्लाह थे जो फूलन की बिरादरी के थे। ठाकुर बिरादरी के डकैत लालाराम, श्रीराम ने विक्रम मल्लाह व उसके एक साथी को मार दिया था। कहते इसके बाद विक्रम मल्लाह गिरोह की सदस्य रहीं फूलन को पकड़ कर ले गए। उसे बेहमई में रखा कहा जाता है वहां डकैतों ने फूलन के साथ अत्याचार किया। तब फूलन ने देखा कि बेहमई के लोग लालाराम व श्रीराम की बहुत मदद करते हैं। इसी बात से उसके मन में इस गांव के प्रति नफरत हो गई। जिसके चलते उसने इस नरसंहार को अनजाम दिया था। वही स्थानी लोगों का कहना है कि ठाकुर और निषाद डकैतों में दुश्मनी हो गई थी। फूलन के गैंग को ऐसा लगता था कि यहाँ के लोग ठाकुरों की मदद करते हैं। जिसके चलते हैं उसने इस नरसंहार को अंजाम दिया। फूलन देवी के 11 साल तक जेल में रहने के बाद मुलायम सिंह की सरकार ने 1993 में उस पर लगे सभी मुकदमे वापस लेने का फैसला किया। इसके बाद 1994 में वह जेल से बाहर आ गई। वर्ष 1996 में सपा की टिकट पर मिर्जापुर से सांसद बन गईं। वर्ष 1999 के चुनावा में वह फिर से सांसद बन गईं। 25 जुलाई 2001 को शेर सिंह राणा उनसे दिल्ली के अशोका रोड स्थित आवास पर मिलने गया। वहां गेट पर गोली मारकर फूलन देवी की हत्या कर दी। ग्रामीणों को मानना है कि इस मामले में इंसाफ नहीं हुआ अभी भी तीन आरोपी डकैत फरार चल रहे हैं जिन्हें पुलिस पकड़ नहीं सके।