महाभारत के महानायक अर्जुन थे जिन्होंने अपने युद्ध कौशल और वीरत से कौरवों पर जीत में सबसे अहम भूमिका अदा की। अर्जुन के पुत्रों की बात होती है सबसे पहले नाम अभिमन्यू का लिया जाता है। जिसे उसके रणकौशल,वीरता और चक्रव्यूह भेदन की जानकारी के लिए याद किया जाता है। अर्जुन का एक पुत्र ऐसा भी था जो अर्जुन से भी अधिक वीर था उसने अर्जुन को युद्ध मे न केवल हराया बल्कि मौत के घाट उतार दिया था। बाद में अर्जुन दोबारा जीवित हुए। अर्जुन के इस प्रतापी पुत्र का नाम बब्रुवाहन था। बब्रुवाहन मणिपुर का राजा था। वह अर्जुन और चित्रांगदा का पुत्र था। जिससे अर्जुन का आमना सामना महाभारत के युद्धा के बाद तब हुआ जब पांडवों ने अश्वमेध यज्ञ के बाद घोड़ा छोड़ा और अर्जुन को उसका रक्षक बनाया था।
अर्जुन औऱ बब्रुवाहन का युद्ध
किरात, मलेच्छ व यवन आदि देशों के राजाओं द्वारा यज्ञ को घोड़े में रोकना चाहा तो अर्जुन ने उनके साथ युद्ध कर उन्हें पराजित किया। इस तरह विभिन्न देशों के राजाओं के साथ अर्जुन को कई बार युद्ध करना पड़ा। यज्ञ का घोड़ा घूमते-घूमते मणिपुर पहुंच गया। अर्जुन और चित्रांगदा का पुत्र बब्रुवाहन ही उस समय मणिपुर का राजा था।जब उसे अपने पिता अर्जुन के आने का समाचार मिला तो उनका स्वागत करने के लिए वह नगर के द्वार पर आया। अपने पुत्र को देखकर अर्जुन ने कहा कि मैं इस समय यज्ञ के घोड़े की रक्षा करता हुआ तुम्हारे राज्य में आया हूं। इसलिए तुम मुझसे युद्ध करो। उसी समय अर्जुन का एक और पत्नी उलूपी भी वहां आ गई। उलूपी ने बब्रुवाहन को अर्जुन के साथ युद्ध करने के लिए उकसाया। जिसके बाद बब्रुवाहन युद्ध करने के लिए तैयार हो गया।
बाप पर भारी पड़ा बेटा
अर्जुन और बब्रुवाहन में भयंकर युद्ध होने लगा। अपने पुत्र का पराक्रम देखकर अर्जुन बहुत प्रसन्न हुए। बब्रुवाहन उस समय नवयुवक ही था। अपने बाल स्वभाव के कारण बिना परिणाम पर विचार कर उसने एक तीखा बाण अर्जुन पर छोड़ दिया। उस बाण को चोट से अर्जुन बेहोश होकर धरती पर गिर पड़े।बब्रुवाहन भी उस समय तक बहुत घायल हो चुका था, वह भी बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा। तभी बब्रुवाहन की माता चित्रांगदा भी वहां आ गई। अपने पति व पुत्र को घायल अवस्था में धरती पर पड़ा देख उसे बहुत दुख हुआ। चित्रांगदा ने देखा कि उस समय अर्जुन के शरीर में जीवित होने के कोई लक्षण नहीं दिख रहे थे। अपने पति को मृत अवस्था में देखकर वह फूट-फूट कर रोने लगी। उसी समय बब्रुवाहन को भी होश आ गया।जब बभ्रुवाहन ने देखा कि उसने अपने पिता की हत्या कर दी है तो वह भी शोक करने लगा।
अर्जुन को मिला नया जीवन
अर्जुन की मृत्यु से दुखी होकर चित्रांगदा और बब्रुवाहन दोनों ही आमरण उपवास पर बैठ गए। जब नागकन्या उलूपी ने देखा कि चित्रांगदा और बभ्रुवाहन आमरण उपवास पर बैठ गए हैं तो उसने संजीवन मणि का स्मरण किया। उस मणि के हाथ में आते ही उलूपी ने बब्रुवाहन से कहा कि यह मणि अपने पिता अर्जुन की छाती पर रख दो। बब्रुवाहन ने ऐसा ही किया। वह मणि छाती पर रखते ही अर्जुन जीवित हो उठे।
अर्जुन को मिली श्राप से मुक्ति
अर्जुन द्वारा पूछने पर उलूपी ने बताया कि यह मेरी ही मोहिनी माया थी। उलूपी ने बताया कि छल पूर्वक भीष्म का वध करने के कारण वसु (एक प्रकार के देवता) आपको श्राप देना चाहते थे। जब यह बात मुझे पता चली तो मैंने यह बात अपने पिता को बताई। उन्होंने वसुओं के पास जाकर ऐसा न करने की प्रार्थना की। तब वसुओं ने प्रसन्न होकर कहा कि मणिपुर का राजा बब्रुवाहन अर्जुन का पुत्र है यदि वह बाणों से अपने पिता का वध कर देगा तो अर्जुन को अपने पाप से छुटकारा मिल जाएगा। आपको वसुओं के श्राप से बचाने के लिए ही मैंने यह मोहिनी माया दिखलाई थी। जिसके बाद अर्जुन, बब्रुवाहन और चित्रांगदा भी प्रसन्न हो गए। अर्जुन ने बभ्रुवाहन को अश्वमेध यज्ञ में आने का निमंत्रण दिया और अपनी यात्रा पर चल दिए।