चतुर्थी के दिन क्यों मनाया जाता है गणेश महोत्सव ? जानिए पौराणिक कथा
भारत में अनेक प्रकार के त्योहार मनाये जाते हैं लेकिन गणेश चतुर्थी का त्यौहार उनमें से एक है. इसे देश में लगभग सब जगह बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है । भगवान गणेश ज्ञान, समृद्धि और सौभाग्य के प्रतीक हैं. भारत में लोग कोई भी नया काम शुरू करने से पहले भगवान गणेश की पूजा करते है। भगवान गणेश को विनायक और विघ्नहर्ता के नाम से भी जाना जाता है। गणेश जी को ऋद्धि-सिद्धि व बुद्धि का दाता भी माना जाता है। गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है. आइये जानते है गणेश महोत्सव क्यों मनाया जाता है ।
क्यों गणेश चतुर्थी मनाया जाता है?
पुराणों के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को भगवान गणेश का जन्म हुआ था । इसलिए चतुर्थी के दिन से गणेश उत्सव आरंभ हो जाता है। गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेशजी की पूजा की जाती है। गणेश चतुर्थी की शुरुआत वैदिक भजनों, प्रार्थनाओं और हिंदू ग्रंथों जैसे गणेश उपनिषद से होती है । गुजरात महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश समेत देश के अनेक राज्यों में बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है .जगहों जगहों पर भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित की जाती है। इस प्रतिमा का नौ दिनों तक पूजन किया जाता है। गणेश चतुर्थी के दौरान सुबह और शाम गणेश जी की आरती की जाती है। प्रार्थना के बाद गणेश जी को मोदक का भोग लगाकर, मोदक को लोगों में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। बड़ी संख्या में आस पास के लोग दर्शन करने पहुँचते है। नौ दिन बाद गानों और बाजों के साथ गणेश प्रतिमा को किसी तालाब, नदी, या किसी सरोवर में विसर्जित किया जाता है।
कैसे हुई गणपति विर्सजन की शुरूआत?
गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी की स्थापना करने की मान्यता है और उसके 10 दिन बाद उनका विसर्जन किया जाता है. कई लोगों को यह जानने के लिए उत्सुकता होंगी कि आखिर भगवान गणेश को इतनी श्रृद्धा के साथ लाने और पूजने के बाद उन्हें विसर्जित क्यों कर दिया जाता है. धर्म शास्त्रों के अनुसार इसके पीछे एक बेहद ही महत्वपूर्ण कथा है.
पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि वेदव्यास ने भगवान गणपति जी से महाभारत की रचना को क्रमबद्ध करने की प्रार्थना की थी. गणेश चतुर्थी के ही दिन व्यास जी श्लोक बोलते गए और गणेश जी उसे लिखते गए. 10 दिनों तक लगातार लेखन करने के बाद गणेश जी पर धूल-मिट्टी लग गई. गणेश जी ने इस मिट्टी को साफ करने के लिए ही 10 वें दिन चतुर्थी पर सरस्वती नदी में स्नान किया था तभी से गणेश जी को विधि-विधान से विसर्जित करने की परंपरा है।
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